मिल गया रामसेतु वाला पत्थर! पानी में तैरता दिखा, अफ्रीका से लेकर आए वैज्ञानिक

अनुज गौतम/सागर. भगवान श्रीराम की वानर सेना ने लंका पहुंचने के लिए समुद्र पर रामसेतु बनाया था. इसे बनाने के लिए नल और नील नाम के वानर पत्थरों को समुद्र में फेंकते थे और वे पत्थर तैरने लगते थे. अब ऐसा ही पत्थर सागर में भी मिल गया है, जो मध्य प्रदेश की डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के जियोलॉजिकल म्यूजियम में रखा गया है.

सागर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे ही पत्थरों का उपयोग रामायण काल में रामसेतु को बनाने में किया गया होगा. जियोलॉजिकल इंडिया सर्वे के आरके चतुर्वेदी ईस्ट अफ्रीका से इस पत्थर को लेकर सागर में आए थे. वह यूनिसर्विटी के जियोलॉजिकल डिपार्टमेंट के सीनियर एल्यूमिनी भी रहे हैं. 20 साल से यह पत्थर वेस्ट म्यूजियम में मौजूद है.

65 मिलियन साल पुराना हो सकता पत्थर
जियोलॉजिकल डिपार्टमेंट के हेड प्रो. हेरल थॉमस ने Local 18 को बताया कि यह फ्लोटिंग पत्थर है, जो लावा के समय एयर या बलून इनके अंदर रह जाते हैं. लाखों साल के बाद जब इनमें से वह हवा निकलती है, तो इनमें छिद्र हो जाते हैं. इन छिद्र की वजह से इनकी डेंसिटी पानी से कम हो जाती है, जिसकी वजह से ये पत्थर पानी में तैरते हैं. उन्होंने बताया कि यह पत्थर 65 मिलियन साल (650 लाख वर्ष) पुराना तक हो सकता है.

रामसेतु में लगे होंगे ऐसे पत्थर 
प्रो. हेरल का कहना है कि रामसेतु की बात करें तो वह लाइमस्टोन और कोरल ड्रीफ से बना हुआ था, हो सकता है फ्लोटिंग स्टोन या प्यूमिस का भी उपयोग उस समय किया गया होगा. इसको एकदम से नकार नहीं सकते कि इसका उपयोग नहीं किया गया होगा. 1480 के आसपास लोग उस पर पैदल भी चलते थे, लेकिन आंधी तूफान की वजह से वह समुद्र में नीचे चला गया और बीच-बीच में टूट भी गया. कार्बन डेटिंग देखें तो इससे पता चलता है कि रामसेतु की उम्र 7000 साल है और यह पीरियड रामायण से मैच कर सकता है. अभी इस पर रिसर्च तो हुई है, लेकिन और भी रिसर्च करके बहुत कुछ पाया जा सकता है.

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Source – News18